Today’s Intuition
हम कहते हैं – मेरे हाथ, मेरा मन, मेरे विचार, पर कभी सोचते हैं कि ये ‘मैं’ कौन है? जो शरीर को देखता है, वह शरीर नहीं हो सकता। जो मन को जानता है, वह मन नहीं हो सकता। यही ‘मैं’ आत्मा है – जो अनुभव करता है, पर खुद किसी अनुभव का विषय नहीं बनता। आत्मा देखने वाला है, अनुभवों से अछूता, निरपेक्ष और स्वतंत्र है। जब हम भीतरी दृष्टि से स्वयं को देखते हैं, तब ‘मैं’ के पार की यात्रा शुरू होती है। यह आत्मा ही हमारे समस्त अनुभवों की साक्षी है, पर कभी स्वयं अनुभव नहीं बनती। योगसूत्र में कहा गया हे- ‘द्रष्टा द्रश्यविभागे चित्तं सर्वविलक्षणम्।’ जान लें कि आत्मा देखने वाला है, देखा जाने वाला नहीं।

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