Today’s Intuition
अहंकार यानी ‘मैं कर रहा हूं’, ‘मैं जानता हूं’, यही सबसे बड़ा अवरोध है आत्मा को देखने में। जैसे सूर्य को बादल ढक लेते हैं, वैसे ही आत्मा को अहंकार ढक लेता है। ज्ञान तब प्रकट होता है, जब ‘मैं’ मिटता है। विनम्रता, मौन और समर्पण, यही उसकी कुंजी है। जब हम ‘मैं’ को त्यागते हैं, तब ब्रह्म चेतना हमें अपने वास्तविक स्वरूप का बोध कराती है। अहं का पतन ही आत्मज्ञान का उदय है। अहंकार जितना सूक्ष्म होता है, उतना ही गहरा अज्ञान का जाल बुनता है। उसे पहचान कर छोड़ देना ही साधक की पहली विजय है। अद्वैत सूत्र कहता है- ‘न अहं कर्ता, सर्वं ब्रह्म कर्ता।’ जो इस सत्य को समझकर ‘मैं’ को छोड़ दे, वही ‘मैं’ को जानता है।

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