Today’s Intuition
सच्ची स्वतंत्रता का अर्थ सिर्फ बाहरी आज़ादी नहीं है। वह भीतरी भय से मुक्ति है। जब तक मन डर से संचालित होता है, तब तक हर निर्णय जंजीर में बंधा होता है। वेदांत भय की जड़ तक जाता है। वह पूछता है कि तुम जिससे डरते हो, वह वास्तव में क्या है? हम डरते हैं, क्योंकि हम अपने अस्तित्व को सीमित मानते हैं। हम सोचते हैं कि अगर यह चला गया, तो मैं अधूरा हो जाऊंगा। परंतु आत्मा अधूरी हो ही नहीं सकती। जब साधक भीतर उस बिंदु को छूता है, जहां वह जानता है कि उसका अस्तित्व शरीर, धन, सम्मान से परे है, तब डर स्वयं मिट जाता है। रामकृष्ण परमहंस कहते थे – जब तक ‘मैं’ है, तब तक भय है। मैं गया नहीं कि भय भी गया।

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