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  • A Tomar
  • June 29, 2025

Today’s Intuition

ऋग्वेद में अग्नि को प्रथम देवता कहा गया- लेकिन वेदांत कहता है कि यह अग्नि बाहर नहीं, भीतर जलती है। जब हम अपनी इच्छाओं की आहुति विवेक की ज्वाला में डालते हैं, तब आत्मा प्रकट होती है। यही आत्मयज्ञ है। हर कामना, हर वासना, हर लोभ जो छोड़ दिया जाए- वह यज्ञ है। भगवद्गीता कहती है – ‘ज्ञानाग्नि: सर्वकर्माणि भस्मसात्कुरुते।’ ज्ञान की अग्नि में पुरानी पहचानें जल जाती हैं। इसीलिए जो ज्ञानी होते हैं, वे अतीत की बातें नहीं करते। वे भविष्य की बातें भी नहीं करते। क्योंकि अब दोनों ही चले गए। तभी तो ज्ञान प्रकट हुआ। इस ज्ञान में अब वर्तमान क्षण ही परम सत्य है। वे उसी सत्य में स्थिर हो जाते हैं।

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