Today’s Intuition
बहुत बार हम मौन को केवल वाणी का रुक जाना समझते हैं। परंतु वेदांत मौन को एक दूसरी ही परत में देखता है, जहां विचार भी मौन हो जाएं। यह मौन वह नहीं जो बाहर होता है, यह वह है जहां भीतर भी कोई संवाद न बचे। जहां मन न बोले, बुद्धि न तर्क करे, सिर्फ एक उपस्थिति हो – जागरूक, विस्तृत, नि:शब्द। यह वही मौन है, जहां ब्रह्म प्रकट होता है। यह अनुभव नहीं किया जा सकता, केवल उसमें विलीन हुआ जा सकता है। वेदांत कहता है – तत्र न वाक् गच्छति न मनः यानी वहां न वाणी पहुंचती है, न मन। यदि तुम जीवन में एक बार उस मौन को छू लोगे, तो शब्द तुम्हें कभी बांध नहीं पाएंगे। इसलिए उस मौन तक पहुंचने का प्रयत्न करो।

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