Today’s Intuition
हम जीवन में हर अनुभव को ‘मेरे साथ’ जोड़कर जीते हैं। खुशी आए तो सोचते हैं कि ‘मैं खुश हूं’, दुख आए तो कहते हैं कि ‘मैं दुखी हूं’। परंतु वेदांत कहता है – तुम वह नहीं जो अनुभव करता है, तुम वह हो जो अनुभव को देखता है। दृष्टा भाव यानी साक्षी बनना। हर विचार, हर भावना, हर घटना को दूर से देखना। ना जुड़ना, ना लड़ना, केवल देखना। यह आसान नहीं, पर संभव है। जब कोई विचार आए जैसे कि ‘मुझे गुस्सा आ रहा है’, तो उसे बदलकर कहो – मुझे ‘गुस्से का अनुभव हो रहा है।’ यह बदलाव जीवन की दिशा बदल देता है। दृष्टा बनते ही हम प्रतिक्रिया नहीं करते, उत्तर देते हैं। संवेदना बची रहती है, रिएक्ट करना खत्म हो जाता है।

Leave your comment